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रातों के बीच एक रात








और फिर रातों के बीच एक ऐसी भी रात आती है, बिस्तर गड़ने लगता है। ज़मीन ही सहारा बनती है। सुबह से हाथों का काँपना बंद नहीं हुआ, गर्दन भारी हुई जाती है, आँखें बंद होतीं हैं और बंद होते ही एक झटके से ऐसे खुलतीं हैं मानो उन्होंने कोई पाप कर दिया हो। बहुत साल बीत जाने के बाद, फिर ऐसी एक रात के आने का ख़ैर मखदम करना है या कुछ नहीं बदलता, इसका अफ़सोस?


स्थितियाँ बदलतीं हैं? मैंने क़सम खाई थी कि ग़ालिब का दीवान दोबारा नहीं उठाऊँगा और बौदेलेयर की कविताएँ भूल जाऊँगा। गर्मियाँ आएँगी और मैं खुद से कहूँगा कि नहीं आयीं। जब ऐसे दिन आएँगे, दस बजे सो जाऊँगा। कोई ऐसा गीत नहीं सुनूँगा जिसमें कहीं भी कोई किसी से छूटता होगा। मैंने क़सम खाई थी कि दुनिया को उम्मीद से देखूँगा। बात करने के लिए मेरे पास एक साथी होगा, जिससे जो महसूस करूँगा, कह दूँगा।  


हाथ काँपना जाने अब कब बंद करेंगे। मुझसे बिस्तर पर बैठा नहीं जाता। अंधेरे से रौशनी की तरफ़ नहीं जाना। फिर भी कभी पानी लेने उधर जाना होगा। गले को सूखने का अभ्यास है, देह को सहते जाने का। हम एक कोने में बैठे अवसाद से बात करते रहेंगे। कि हमने सोचा था एक ईश्वर हमें बचाने आएगा, यही हमारा पाप है। इसी का दुःख, शोक में बदल जाएगा। आँखें रोना चाहेंगी, फिर याद आएगा पानी नहीं है। 


पंद्रह बरस पहले ऐसी एक रात आयी थी। तुम नहीं सीखे। दस बरस पहले और नौ सौ अठारह दिनों पहले। तुम नहीं सीखे। तुमको वादों को दिल से नहीं लगाना था। तुमको भूलने से दोस्ती करनी थी और अकेलेपन से। इस दोहराव को कैसे ख़त्म करोगे। हर बार मौत के कूँए का एक चक्कर। एक बार सर्कस की रिंग में शेर से भिड़ना। कश्मीरी गेट पर अपने से बेहतर कवि से किया हुआ वादा तुमको क्यों याद नहीं रहता? 


इस रात के पहले शाम की उमस होती है और पैरों का दर्द। शाम की उमस के बीच बारिश की एक दर्खवास्त और फिर लम्बी बिना नींद की एक पूरी रात जिसकी सुबह होने से डर लगता है। क्या तुमने इसका भी उत्सव बना लिया है? तुमसे बिस्तर पर बैठा नहीं जा रहा रात के ढाई बजे और तुम अवसाद में नायक़त्व ढूँढने लगे हो। और नई कविताओं के बीज। किसी से सच मत कहो।यह रात फिर यही याद दिलाने आयी है। छिप जाओ और शुक्रिया कहो उस दिन को जिसने तुम्हें समझाया कि तुम बहुत व्यापारी होने लगे थे। मत हो। दुनिया से बचो, कविता से बचो, और नींद की तपस्या करो। 


रातों के बीच एक रात, जिसकी कोई भोर नहीं, सिर्फ़ एक पक्ष रख सकती है। हाथ काँपते रहते हैं। गर्दन झूलती रहती है।